संसद परिसर से डॉ. अंबेडकर सहित अन्य महापुरुषों की प्रतिमाएं विस्थापित किए जाने के ख़िलाफ़ 26 जून को जंतर मंतर पर विशाल प्रदर्शन
दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (पत्रकार परवेश मेहरा) l नई दिल्ली, 23 जून 2024. दलित, ओबीसी और माइनॉरिटीज़ परिसंघ (DOM परिसंघ) की राष्ट्रीय चिंतन बैठक कल दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित की गई और इसमें क़रीब 300 चिंतक और नेता पूरे देश से भाग लिए। मुख्य रूप से बहुजन आंदोलन को ज़िंदा रखने और आगे बढ़ाने के लिए रणनीति पर चर्चा की गई। बहुजन आंदोलन की शुरुआत जागृति से हुई। जो फुले, शाहू, अंबेडकर, पेरियार, रविदास, कबीर, नारायण गुरु आदि के विचारों पर आधारित है। सामाजिक जागृति पैदा करने में कर्मचारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की भूमिका प्रमुख रही। समाज में जब कुछ जागृति हुई तो राजनीति में आंदोलन प्रवेश किया और आंशिक सफलता मिली। कांशीराम जी के न रहने के कारण निरंतर आंदोलन में गिरावट आई और अब ख़ात्मे की ओर पहुंच गया है। त्रासदी है कि ख़ुद को मिटाकर बीजेपी को ताकत देने में लगा है।
डॉ. उदित राज, पूर्व सांसद, राष्ट्रीय चेयरमैन, DOM परिसंघ, ने बताया कि गहन चर्चा के उपरांत आन्दोलन के अंतर्विरोधों पर विचार किया गया। डॉ. ओ. पी. शुक्ला, वरिष्ठ समाजसेवी, ने कहा कि एक विशेष जाति का क्या बहुजन आंदोलन का ठेका हो गया है? वाल्मीकि समाज का हिस्सा कहां गया और इनको क्यों नही भागीदारी दी गई ? शायद पहली बार अंदर की भड़ास और ग़ुस्सा बाहर निकलकर आ रहा था। परिसंघ के राष्ट्रीय महासचिव, सी. पी. सिंह का कहना था इससे हममें बंटवारा और विभाजन होगा। जेएनयू के प्रोफेसर महेंद्र प्रताप राना ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि बिना सभी जातियों को लिए हम आगे नही बढ़ सकते। जो जातियाँ कुछ प्रगति कर ली हैं, उन्हें बड़ा दिल करना होगा और पीछे छूटी जातियों के साथ मिलकर चलना होगा वरना जो कुछ प्राप्ति हुई है, वह भी न रह जाएगी। उन्होंने आगे कहा कि बसपा एक विशेष जाति की पहचान की पार्टी जब बनी तो गिरावट शुरू हो गया। अगर एक भी कम संख्या वाली जाति विरोध में खड़ी हो जाती तो हराने में तो सक्षम है ही। अंत में निष्कर्ष निकाला गया कि दलितों में भी मोहब्बत की दुकान खोलनी होगी। राहुल गांधी जी ने अगर हिंदू-मुसलमान के बीच मुहब्बत की दुकान खोली है तो दलितों और पिछड़ों में जो दूरी और विरोध है उसे भी ख़त्म करने का ऐसा ही प्रयास करना होगा। यह सच्चाई स्वीकार करनी होगी कि एक जाति चाहे उसकी जितनी संख्या बड़ी हो, वह अकेले न चुनाव जीत सकती है और न ही किसी आंदोलन को सफल बना सकती है। मनोज कुमार (पूर्व न्यायाधीश) नगीना के पूर्व इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी ने भी कहा कि उन्होंने भी उपजातिवाद का कड़वा अनुभव किया है। आगर ऐसा रहा तो कभी बहुजन का भला न होगा और सवर्ण सत्ता और संसाधन पर हमेशा क़ाबिज़ रहेंगे ।
डॉ. उदित राज ने समापन भाषण में कहा कि जो डॉ. अंबेडकर के विचारों पर चलने की बात करते रहे लेकिन स्वयं जाति के संगठन बनाते रहे, उन्होंने डॉ. अंबेडकर को धोखा दिया। डॉ अंबेडकर जाति निषेध के लिए संघर्ष किए। देखा जा रहा है कि सब जगह आपस में लड़ रहे हैं। पंजाब में रविदासी-मज़हबी, हरियाणा में A और B, महाराष्ट्र में महार-मातंग, आंध्र और तेलंगाना में माला-मदिगा, बिहार में पासवान बनाम अन्य जातियों के अंतर्विरोध को स्वीकार करना होगा और जब तक खुलकर चर्चा नहीं होती, निराकरण असंभव है । कम्युनिस्टों ने ऐतिहासिक भूल की थी और जाति के सवाल पर चर्चा नहीं की और न ही निवारण। आज उनकी क्या स्थिति है, सब जानते हैं। DOM परिसंघ मोहब्बत की दुकान खोलेगा, ताकि सही एकता बनें।
राज कुमार सैनी, पूर्व सांसद, ने वर्तमान में ओबीसी को जगाने का बड़ा काम किया है। कहा जाए तो वर्तमान में बहुजन आंदोलन के बड़े प्रणेता हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि DOM परिसंघ में सभी दलित, ओबीसी, मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यकों को भागीदारी देना चाहिए ।
मुस्लिम समाज में जगाने के लिए प्रयास करना होगा । इनको डराया गया है इसलिए हमें इनकी बात उठाना होगा। इनसे संवाद करने की ज़रूरत है कि ये क्यों नहीं दलित ओबीसी के साथ जुड़ते?
सर्वसम्मति से यह भी प्रस्ताव मंजूर हुआ कि भागीदारी यात्रा निकाली जाए, जिसमें आउटसोर्सिंग में आरक्षण, निजीकरण पर रोक और उसमें आरक्षण, जाति जनगणना, भूमि आवंटन, उच्च स्तर तक मुफ़्त शिक्षा, लाखों ख़ाली पदों पर भर्ती आदि का मुद्दा उठाया जाए।
डॉ. उदित राज जी ने बताया कि सर्वसम्मति से यह भी निर्णय लिया गया कि संसद परिसर से डॉ. अंबेडकर सहित अन्य महापुरुषों की प्रतिमाएं विस्थापित किए जाने के ख़िलाफ़ 26 जून को जंतर मंतर पर सभी बहुजन संगठनों द्वारा विशाल प्रदर्शन किया जाएगा। डॉ. अंबेडकर और गांधी की प्रतिमा संसद के प्रमुख स्थान से हटा दी गई है ताकि इनके प्रभाव को ख़त्म किया जा सके। जितने महापुरुषों की मूर्तियाँ संसद के परिसर में लगी हैं, सभी का पूरा सम्मान है लेकिन कुछ मामलों में गाँधी जी और डॉ. अंबेडकर के योगदान अलग हैं, मोदी सरकार चाहती है कि इनके क़द को छोटा किया जाये। यह बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और लगातार इसका विरोध जारी रहेगा।