मौसर और समाज की स्थिति
दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगाँवलिया) । किसी भी परिवार में जब किसी अपने की मृत्यु होती है, चाहे वह बूढ़ा हो या जवान आखिर उस परिवार में एक जन हानि होती है और उस परिवार के सदस्यों के आंसू नहीं रुक रहे होते है। ऐसे दुखद समय में हमें शोकाकुल परिवार को ढाँढस बंधाना चाहिए, आवश्यक सहायता करनी चाहिये, ऐसी दुखद घड़ियों में उनके साथ खड़े रहना चाहिये। यह कर्तव्य मित्रो,शुभचिंतको और समाज के लोगो को निभाना चाहिए। इसके विपरीत हो रही गतिविधियों को देख कर जर्नलिस्ट एवं सामाजिक कार्यकर्ता के के सिवाल जी ने समाजहित एक्सप्रेस के माध्यम से स्थिति से अवगत करा कर समाजहित में सुझाव आमंत्रित भी किये है। आपके गहन चिंतन और मनन करने हेतु प्रस्तुत है उनके द्वारा लिखित विचार/अभिव्यक्ति :-
-के के सिवाल, जर्नलिस्ट एवं सामाजिक कार्यकर्ता-
राजस्थान के गांव अथवा शहरों में होने वाले मृत्युभोज का बोझ जो बेमतलब गरीब लोगों को कर्ज देकर करवाया जाता था ,उसे जैसे जैसे शिक्षा का प्रसार गॉवों में बढ रहा है वैसे वैसे समझदार मौहल्ले दारों द्वारा इस दिशा में कदम उठाकर गरीबमार होने से बचाने का प्रयास किया जा रहा है । यह सराहनीय है ।
दूसरी ओर दिल्ली की परिस्थिति कुछ अलग है ,यहॉ पर राजस्थान के गांवों में आयोजित होने वाले करजीले और खर्चीले मौसर नहीं होते -! यहॉ हर व्यक्ति अपनी हैसियत देखकर ही तीसरे दिन सारा कार्य निपटा देता है । हॉ कुछ समय से यहॉ नये नये अमीरों ने मृत्युकाज को एक उत्सव में तब्दील कर दिया है । जैसे पगड़ी रस्म पर सभी रिश्तेदार पैरावनी लाने लग गये , कपड़े दिये जाते है , दिन में मिठाई संग खाना दिया जाता है , रात का सत्संग आयोजित करते हैं , फिर अस्थि विसर्जन के नाम पर रिश्तेदारों की बस भर कर हरिद्वार कूच करते हैं वहॉ धर्मशाला जाकर हलवाई से नाश्ता तैयार करवाया जाता है तब तक अस्थि विसर्जित करने चले जाते हैं , वहीं विदाई बांटी जाती है जिसमें बहन बेटी व अन्य महिलाओ को दान स्वरूप कपड़े आदि देकर वापिस धरमशाला आकर गर्म नाश्ता लेने के बाद सभी लोग हरिद्वार दर्शन और मार्केटिंग करने में मस्त हो जाते हैं इस समय मृत परिजन का कोई गम किसी को भी नहीं होता ।
मार्केटिंग के बाद वापस धर्मशाला आते ही गरमा गर्म खाना तैयार मिलता है जिसे खूब मस्त होकर सभी जीमते है फिर कुछ समय आराम करते है तदुपरांत बस तैयार होती है । सभी यात्रीगण बस में बैठकर वापिस दिल्ली आ लगते है । इस प्रकार दिल्ली में हैसियत दार सज्जन मृत्यु पर्यटन करते है ।
अनुरोध: हम दिल्ली वासियों से अपेक्षित अपील कर रहे हैं कि यह दुखद समय तो सभी के साथ आता है मगर हम थोड़ा-बहुत बदलाव जरूर करें और यह बदलाव देखा भी जा रहा है जो कि सुखद है । हमारी सामाजिक प्रार्थना पर सज्जन लोग अमल भी कर रहे हैं जैसे :-
1. खास रिश्तेदार ही कफन लायें बाकि सभी कफन देने वाले उस रकम को खिचड़ी में नकद दें ताकि गरीब परिवार को सहारा लगे ।
2. तीसरे दिन की सुबह अस्थि लेने जाते है तब बची राख को यमुना नदी ले जाने के बजाय पास के रिज़ में लगे पेड़ पौधों मे बिसरा देवे जोकि पर्यावरण में सहायक होगा ।
3. अस्थि विसर्जन हेतू दिल्ली के पास ही धारा प्रवाह गढ़गंगा के लिए घर के चार-पांच लोग ही जाए और अस्थि विसर्जित कर वापिस आ जाए। यही क्रम अगर हरिद्वार ही जाना हो तब भी घर के चार लोग सुबह जाए और शाम तक वापस आ जाए।
4. शोक सभा करें तो जो रिश्तेदार घर पर हैं उन्ही का सादा खाना बनाए लेकिन उसमें कोई मीठा शामिल ना करें ।
5. शोक सभा की समाप्ति के बाद आगंतुकों के लिए चाय,बिस्किट जैसे स्नैक्स का प्रबंध करे । बस ! इससे हर व्यक्ति समान हैसियत का स्वयं को महसूस करेगा ।।
सुझाव आमंत्रित है