Sunday 08 December 2024 4:44 AM
Samajhitexpressजयपुरताजा खबरेंनई दिल्लीराजस्थान

शैशवावस्था में मानव जो प्रथम भाषा सीखता व बोलता है उसे उसकी मातृभाषा या वात्सल्य की भाषा कहते हैं

दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l  शैशवावस्था में मानव जो प्रथम भाषा सीखता व बोलता है उसे उसकी मातृभाषा कहते हैं, जो माँ की ममता के स्नेह से परिपूर्ण होती है। अपनी जननी के साथ हर क्षण को बांटना, सिखना और समझना एक बच्चा जिस भाषा से शुरू करता है, जीवन के प्रारंभ में संचार का यह प्राथमिक साधन मातृभाषा ही कहलाता है।

मनुष्य के जीवनकाल में सर्वप्रथम अपनी भावनाओं को शब्दों में पहचान देना मातृभाषा के द्वारा होती है।

हम जिससे वात्सल्य प्राप्त करते हैं उसे सम्मान स्वरूप् मां कहते हैं।

मातृभाषा का अस्तित्व देश, स्थान और संस्कृति के अनुसार बनता है, जो सम्पूर्ण विश्व में अलग-अलग परन्तु महत्वपूर्ण है। प्रत्येक व्यक्ति की पहचान जिस प्रकार उसके देश, वेश, नगर, परिवार व नाम से होती है वैसे ही भाषा बोली भी उसी पहचान का हिस्सा है। भारत बहुभाषी देश है, अन्य विविधताओं की तरह भाषाओं की विविधता भी पर्याप्त है, भारत की सारी भाषाएं उन उच्च लोगों के लिए मातृभाषा है जिस अंचल में वे निवास करते हैं। क्योंकि हिंदी अधिकांश प्रान्तों में बोलचाल की भाषा है। हम केवल उसे ही मातृभाषा मान लेते हैं, जबकि हिन्दी तो मात्र सम्पूर्ण भारत की सम्पर्क भाषा है,

हमारे संविधान में कुल 22 भाषाओ को मान्यता है। यह भाषाएँ अपने भारत को सांस्कृतिक रूप से सुदृढ़. बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। संवाद, लेखन, पठन, अभिव्यक्ति, परम्पराएं , गीत, भजन, रीतिनीति व जीवन मूल्यों आदि अनेको रूप में मातृभाषा को सहेजा जाता रहा है।

मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा बालक के लिए सर्वाधिक ग्राह्य होती है। मानव संसार के किसी भी कोने का क्यों न हो परन्तु जब भी वह पीड़ा के क्षण में होता है तो उसके मुख से उसकी मातृभाषा में ही शब्द निकलता  है। पीड़ा के उस असहनीय समय में मातृभाषा में भरी आवाज क्षणिक औषधि का भी अनुभव कराती है, माँ के सानिध्य सा।

मातृ भाषा शर्म नही मर्म है”

आज बहुत से लोग जो अपनी मातृभाषा को बोलना बन्द कर चुकें हैं, जिसका कहीं-कहीं कारण लज्जा, दिखावा भी होता है, उनको भी कोई गूढ़ विषय सहज सरल अपनी मातृभाषा में ही समझ आता है।

मातृभाषा में भावाभिव्यक्ति सरल और अधिक प्रभावी होती है। भावनाओं की निजता से यह निजभाषा भी कही जाती है। प्रत्येक व्यक्ति के धड़कते ह्रदय की पहचान है मातृभाषा। हम सभी को अपनी मातृभाषा की अनमोलता पर गर्व  व अन्यों की मातृभाषा का सम्मान करना चाहिए। कार्यशैली की भाषा और जीवन शैली की भाषा में अन्तर पहचान रखते हुए हमारे जीवन-व्यवहार में मातृभाषा, देशभक्ति, संस्कृति और समृद्धि का प्रतीक है। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी मातृभाषाओं के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। हम प्रतिदिन अपने घर परिवार की बोलचाल में मातृभाषा को चलायमान करें।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also
Close