वर्तमान समय में दिशाविहीन हो रहे समाज में, प्रबुद्ध लोगो के बीच आपसी समन्वय की आवश्यकता है
दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l आजकल सोशल मीडिया पर समाज के लोगो के द्वारा अपने ही समाज के लोगो पर कटाक्ष और विरोधाभास करते देखे जा सकते है l दरअसल समाज ऐसे ही हालात के चलते हाशिये पर आया है l हमारे अधिकाश नेता सारी जिंदगी समाज की बात नहीं करते और अपने आखरी दिनों में सामाजिक संगठनो और सामाजिक नेताओं से जुड़ने लगते है I ऐसे सामाजिक नेता जब उनके हाथो में समाज के लिए कुछ करने की काबियत/पॉवर होती है तब समाज के अस्तित्व को ही नकारते है और बाद में उसी समाज में सम्मान खोजते है I वस्तुतः समाज ऐसे ढोंगियों से भरा पड़ा है I समाज के लोगो को भी अब ऐसे नेताओं का सोशल मीडिया और ज़मीनी स्तर पर दोनों जगह उनका बायकाट करना होगा और उन्हें बताना होगा कि समाज केवल उसे ही सपोर्ट करेगा, जिसने समाज के लिए कुछ किया होगा I
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इतिहास गवाह है कि सामाजिक सुधार एवं उत्थान सदैव धन एवं पद विहीन लोगों ने ही किया है I हमारे सभी महापुरुष मेधा में अद्वितीय परन्तु साधन विहीन ही थे I उनका संबल केवल समाज था I हमारे समाज में मिश्रित विचारधारा और संस्कृति है जिसके चलते कोई एक विचारधारा हमारे समाज में स्थान नहीं बना पायी है इसलिए सामाजिक स्वाभिमान कहीं पर भी परिलक्षित नहीं होता I सामाजिक स्वाभिमान कहने से नहीं, व्यवहार से परिलक्षित होता है I हमारा सामाजिक व्यवहार ही हमें कमजोर बना रहा है I हमें पहले इस व्यवहार को बदलना पड़ेगा तभी हम मजबूत होंगे और हमारा संगठन मजबूत होगा I
कई ऐसे संगठन हैं जो समाजहित में कार्यरत हैं । इनके अलावे कुछ ऐसे संगठन भी हैं जिनके पास अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व् महसचिव, सचिव के आलावे कोई सदस्य भी नहीं है । कई अपने आपको और संगठन को सही साबित करने एवं दूसरे संगठन को कमजोर व गलत सिद्ध करने के प्रयास मे समाजहित और समाज विकास के मूल उद्देश्य से ही दूर होते जा रहे हैं I क्या ऐसा नही लगता की इन लोगो के सभी संगठनो के बीच समन्वय की आवश्यकता है ।
निस्वार्थ और निष्पक्ष रूप से समाजहित मे कार्यरत कुछ प्रमुख लोगों की राय व सहमति से उनके मार्गदर्शन में सामाजिक एकता समिति का गठन किया जाना चाहिए I भले ही हमारी वैचारिक भिन्नता हो पर हमारा मकसद एक मजबूत समाज का निर्माण करना होना चाहिए । अगर निस्वार्थ और निष्पक्ष रूप से समाजहित मे कार्यरत लोग आपस मे एकजुट नही हो सकते तो, फिर सामाजिक एकता की बात तो हास्यास्पद ही है I