अखिल भारतीय रैगर महासभा के त्रिवार्षिक चुनाव में लोकलुभावन समाज विकास के वादो के साथ जारी किये गए घोषणा-पत्र
दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l अखिल भारतीय रैगर महासभा के त्रिवार्षिक चुनाव में पहली बार राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए 06 उम्मीदवारों सहित 34 पदों के लिए कुल 106 प्रत्याशियों ने अपने अपने पैनल सहित नामांकन फॉर्म भरा है l महासभा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी चुनाव ने समाज में आरोप-प्रत्यारोप के साथ एक सामाजिक जंग का रूप ले लिया है l मतदाताओ को लुभाने के लिए सभी 6 पैनलों के द्वारा जारी घोषणा-पत्रों में किए गए लोकलुभावन समाज विकास के वादे मीडिया और मतदाताओ में काफी चर्चा का विषय बना हुआ है ।
अखिल भारतीय रैगर महासभा के त्रिवार्षिक चुनाव में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए 06 उम्मीदवारों में खुबराम सबलानिया, चतर सिंह रछौया, दयानंद कुलदीप, बी.एल. नवल, डॉ० भवानी शंकर पीपलीवाल व डॉ० एस.के. मोहनपुरिया आदि प्रमुखों ने अपने अपने पैनल के घोषणा-पत्र जारी किये l
प्रत्याशियों द्वारा जारी घोषणा-पत्र एक प्रकार का पैनलों का प्रमाणिक दस्तावेज होता है जिसमें पैनल समाज विकास के वो कार्य दर्ज करवाते हैं जो वह जीतने के बाद पूर्ण करेंगे । लोकतंत्र की व्यवस्था वाले समाजो में चुनाव लड़ने वाले पैनल चुनाव के कुछ दिन पहले अपना घोषणा-पत्र प्रस्तुत करते हैं । इन घोषणा-पत्रों में इन बातों का उल्लेख होता है कि यदि वह जीत गये तो मौजूदा समाज विकास के नियम-कानूनों एवं नीतियों में किस तरह का परिवर्तन करेंगे । किस प्रकार की समाजहित की नीतियाँ बनाएंगा । समाज के विकास के लिए या समाज के भविष्य के लिए कौन-सा कार्य करेंगे, इन सब बातों का घोषणा-पत्र चुनाव लड़ने वाले पैनल की रणनीतिक की दिशा भी तय करते हैं ।
अखिल भारतीय रैगर महासभा का यह इतिहास रहा है कि प्रत्याशियों के पैनलों द्वारा घोषणा-पत्र में कुछ भी लोकलुभावन वादा करें, मगर ये जरूरी नहीं है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी बनने पर वे उन वादों पर खरे भी उतरें या उतरने की कोशिश भी करें । शायद इसी वजह से चुनावी घोषणा-पत्र को मतदाताओं द्वारा गंभीरता से नहीं लिया जाता है । चुनावों के दौरान, युवा पीढ़ी चुनावी घोषणा-पत्र को पढ़ना पसंद ही नहीं करती ।
रैगर मतदाताओ का कहना है कि समाज के मतदाताओ से वोट केवल उन्हीं वादों पर मांगा जाना चाहिए जो कि प्रत्याशियों द्वारा पूरे किए जाने संभव हों । इतना ही नहीं, किए गए वादों के पीछे कोई ठोस तर्क या आधार भी होना चाहिए । जिस घोषणा-पत्र/मेनिफेस्टो की बदौलत प्रत्येक मतदाता को महासभा से सवाल करने का अधिकार है और जिसपर महासभा जवाबदेह है, आज उसी घोषणा-पत्र/मेनिफेस्टो का ज़िक्र केवल खानापूर्ति भर रह गया है ।
समाज के प्रबुद्ध लोगो का मानना है कि रैगर समाज का विकास निरंतर हो, इसके लिए जरूरी है कि घोषणा-पत्र के लिए हर हाल में जारीकर्ता का उतरदायित्व तय किया जाय । वास्तविक समाज विकास के मुद्दों को प्रमुखता से अपने घोषणा-पत्रें में जगह देनी चाहिए ताकि सामाजिक लोकतंत्र की मूल भावना का विकास हो और सामाजिक लोकतंत्र में समाज के मतदाताओ के पास ही यह ताकत रहनी चाहिए कि कौन उन पर शासन करेगा और उनको किससे शासित होना चाहिए । इस प्रकार महासभा के चुनाव में सभी पैनलों के प्रत्याशियों का उतरदायित्व समाज के मतदाताओ के प्रति होना चाहिए ।