Sunday 08 December 2024 12:01 PM
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लक्ष्य बिना समाज में जागृति असम्भव

दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (बाबू लाल बरोलिया, अजमेर) l

मनुष्य जन्म लेता है, खाता है,पीता है, बड़ा होता, पढ़ता भी है, लिखता भी है और बहुत कुछ कमाकर अपने परिवार का पालन पोषण भी करता और सांसारिक मोह माया में रहकर अंत में जैसा आया था वैसा ही इस संसार को त्याग कर प्रस्थान कर जाता है | बहुत ही कम लोग होते हैं जो अपने जीवन में कोई लक्ष्य लेकर चलता है कि वह इस दुनिया में आया है तो कुछ कर जाय जिस से उसको लोग सदियों तक विस्मृत ना कर सके, लेकिन जिस व्यक्ति के जीवन में कोई ”लक्ष्य” नहीं होता है वह सदैव अज्ञान के बंधनों में बंधा रहता है । जीवन का ”लक्ष्य” आत्मज्ञान है । विनोबा भावे ने कहा था, ”चलना आरंभ कीजिए, लक्ष्य मिल ही जाएगा ।” इसी प्रकार स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था “उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाए” इतिहास उन्हें ही याद रखता है जो असंभव लक्ष्य निर्धारित करते हैं और उन्हें प्राप्त करते हैं ।

आज हमारे समाज में प्रतिभाओं की कमी नहीं है , समाज के लोग शिक्षित होकर हर क्षेत्र में परचम भी लहरा रहे है और समाज उनको सम्मान की दृष्टि से भी देखता है जो लोग आगे बढ़ रहे है और उनसे यह उम्मीद भी रखते हैं कि शायद ये प्रतिभाएं समाज की आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणास्त्रोत बनेंगे लेकिन अधिकतर देखा यह जाता है कि ये बहु प्रतिभा के धनी सिर्फ अपने परिवार तक ही सीमित है, उनको समाज से कट कर रहना ही उचित लगता है | ऐसे लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि जो प्रतिभाएं समाज में उभर रही है उनके भी तो कोई प्रेरणास्त्रोत / मार्गदर्शक रहे होंगे | यहाँ कहने का तात्पर्य यह है कि जो समाज में आगे बढ़ रहे हैं उनको भी चाहिए कि वो हमारे दबे कुचले भाइयों को भी प्रोत्साहित करें जैसे हमारे समाज के कुछ इतिहास पुरुष हुए थे, इन्होने अपने समाज को सुधारने में अपना जीवन त्याग दिया | कहते है कि जो समाज अपने इतिहास पुरूष को याद नहीं रखता, वह समाज कमजोर ही नहीं होता, बल्कि मिट्टी की गर्त में चला जाता है  ।

रैगर समाज के इतिहास पुरूष अमर शहीद त्यागमूर्ति स्वामी श्री  आत्मा राम जी ‘लक्ष्य’ ने परम श्रद्धेय पूजनीय स्वामी श्री  ज्ञानस्वरूप जी महाराज के परमशिष्य‍ बनकर उन्हीं  की कृपा से काशी में व्याकरण भूषणाचार्य पद को प्राप्त कर, अपने सतगुरू के आदेशानुसार जातीय उत्थान का ”लक्ष्य” लेकर रैगर समाज के उत्थान के लिए भारत देश के ग्राम-ग्राम में जाकर अपनी रैगर जाति में व्याप्त कुरीतियों के सुधार हेतु शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया । बेगार बहिष्कार, बाल-विवाह, मृत्यु भोज, पाखंड, दिखावा और फिजूल खर्ची पर पाबन्दियां लगाई और शिक्षा का प्रचार प्रसार कर लोगों को शिक्षित होने के लिए संकल्प दिलवाया  । यही उनका ”लक्ष्य ” था । इसी ‘लक्ष्य ’ की प्राप्ति  के लिए उन्हों ने अपने सम्पूर्ण जीवन काल में जगह-जगह जाकर समस्त रैगर बन्धुओं को जैसे दिल्ली, कराची, हैदराबाद (सिंध), पंजाब, मीरपुर, टन्डय आदम, अहमदाबाद, गुजरात, ब्यावर, जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर, छोटीसादड़ी, करजू, कराणा, कणगट्टी, फागी, इन्दौर, जयपुर, अलवर आदि व राजस्थान राज्य के अनेक ग्रामों से सभी सजातीय बन्धुओं को एक वृहद समाज का अखिल भारतीय रैगर समाज का महासम्मेलन दौसा ग्राम में अजमेर के श्री चान्दकरण जी शारदा शेर राजस्थान की अध्यक्षता में 2, 3 व 4 नवम्बर, 1944 को सफल आयोजन किया और उस सम्मेलन के स्वागताध्यक्ष आप ही थे । वह दिन आज भी चिरस्मरणीय है जिनको चार घोड़ों की बग्घी में अपने गुरू स्वामी ज्ञानस्वरूप जी महाराज के चरणों में बैठकर चांद करण जी शारदा की अध्यक्षता में समाज के उत्थान के लिए कुरीतियों को मिटाने के प्रस्ताव पास किए जो आज तक समाज में लागू है । दूसरा सम्मेलन सन् 1946 में जयपुर में दिल्ली  निवासी चौधरी कन्हैयालाल जी रातावल की अध्यक्षता में आयोजित किया जिसके चौ. गौतम सिंह जी सक्करवाल स्वागताध्यक्ष बने ।

स्वामी जी रैगर समाज के सर्वांगीण उत्थान के कार्य में लगातार व्यस्त रहने के कारण कई वर्षों से अस्वस्थ थे, किन्तु उन्होंने अपने स्वास्थ्य  की चिन्ता ना करते हुए, अपनी आत्मा की पुकार पर सदैव समाज हित में कार्यरत रहे । अत: वे विकट संग्रणी-रोग के शिकार हो गए जो कि उनके जीवन में साथ छोड़कर नहीं गया, इस प्रकार समाज के उत्थान के लिए आपने अपने लक्ष्य को पूर किया और 20 नवम्बर 1946 को जयपुर में चान्द पोल गेट श्री लाला राम जी जलूथरिया जी के निवास स्थाप, उस ‘त्याग’ मूर्ति के जिसने अपना सारा जीवन अपने ‘लक्ष्य’ की पूर्ति में लगा दिया प्राण पखेरु अनन्त, गगन की ओर उठ गए और वे सदैव  के लिए चिर निंद्रा में सो गए । रैगर जाति को प्रकाशित करने वाला वह सूर्य अस्त हो गया |

देखा जाए तो वस्तुत: स्वामी आत्मा रामजी ‘लक्ष्य ’ अपने जीवन भर के लक्ष्य  की प्राप्ति में पूर्ण रूपेण सफल रहे । लेकिन फिर भी उन्होंने वसीयत के रुप में अपने जीवन को तीन अन्तिम अभिलाषा में व्यक्त किया जिन्हें स्वामीजी अपने जीवन काल में ही पूरा करना चाहते थे लेकिन कर नहीं सके थे । स्वामी जी ने श्री कंवरसेन मौर्य जी को रैगर समाज के उत्थान के लिए तीन बातें कही जो उनके ‘लक्ष्य’ के रूप में थी कि ये जल्द से जल्द पूर्ण हो वे इस प्रकार है :-

1. रैगर जाति का एक विस्तृत इति‍हास लिखा जाना चाहिए

2. रैगर जाति में उच्च शिक्षा का अध्य‍यन करने वाले विद्यार्थियों के लिए जगह-जगह पर रैगर छात्रावासों का निर्माण होना चाहिए

3. रैगर जाति के अपने एक समाचार पत्र प्रकाशन हो |

स्वामी जी ने अपने परिवार को त्याग कर अपने जीवन के एक मात्र ‘लक्ष्य’ रैगर जाति के उत्था‍न की प्राप्ति के लिए न्यौछावर कर दिया इस लिए उनको त्या‍ग मूर्ति स्वामी आत्मा राम लक्ष्य  के नाम से भी जाना जाता है । रैगर समाज के ऐसे युग पुरूष को हम कोटि कोटि नमन करते हैं ।

अब सवाल उठता है कि क्या हमारे समाज में ऐसे युग पुरुष अवतरित हो पायेंगे जो समाज के उत्थान के लिए समर्पित हो सके | समाज में सदियों से प्रचलित सामाजिक बुराइयां, कुरीतियाँ, रुढ़िवादी परमपराएं और अंधविश्वास को कौन मिटाएगा जबकि साधन सम्पन्न हो जाने के कारण हम अन्य समाजों की देखा देखी, अथवा आधुनिकता के नाम पर दूरदर्शन के नवीनतम धारावाहिकों में दिखाए जाने वाले फूहड़ नाटक जो केवल मनोरंजन के साथ साथ दूरदर्शन के कलाकारों का एक व्यवसाय मात्र है जिसको आधार बनाकर नई नई परम्पराएं अपनाते जा रहे है फलस्वरूप गरीब और मध्यम वर्ग आर्थिक संकट में गोते लगा रहा है पुरानी रूढ़ियाँ तो छोड़ना दूर की बात हो गयी है | अगर समाज का कोई बन्धु इस अवांछित रीति रिवाज, कुरीतियों और रुढ़िवादी परम्पराओं को मिटाने अथवा इसमें सुधार करने के लिए आवाज उठाता है तो आज हमारे समाज में इतने बुद्धिजीवी लोग है कि उसकी आवाज को दबाने का प्रयास किया जाता है जिसमें कहीं ना कहीं उनका स्वार्थ भी हो सकता है जिसमें अधिकतर समाज सुधारक कहे जाने वाले लोग ही होते हैं | समाज में समाज सुधार हेतु आवाज उठाने वाले नगण्य बन्धु है जबकि आवाज को दबाने वाले लोगों का बाहुल्य है | अंत में मैं यही कहना चाहूँगा कि समाज बंधुओं उठो जागो और वक़्त के हिसाब से समाज की जो आज किसी काम की नही, ऐसी प्रथाओं पर फिर से गौर करें और उसे वर्तमान परिपेक्ष्य के हिसाब से सोचें और करें |

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