बुजुर्ग माता पिता के प्रति युवा पीढ़ी अपने कर्तव्यों व संस्कारों को निष्ठा से निभाये

दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l वृद्धावस्था में बुजुर्गों को कई प्रकार की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है । आधुनिकता की अंधी दौड़ में भागते हुए बच्चे अपने बुजुर्ग माता पिता के प्रति उत्तरदायित्व नहीं निभा रहे, और अपने कर्तव्यों व संस्कारों को भूलते जा रहे हैं l आज सरकार को हर जिले में वृद्धाश्रम खोलने की ज़रूरत महसूस हो रही है । दुनिया में तेजी से उम्र बढ़ने के साथ, यह अनुमान लगाया गया है कि 2030 तक 34 देश ऐसे होंगे जिनकी 20% से अधिक आबादी 65 वर्ष से अधिक उम्र वालो की होगी ।
अपने बच्चो की खुशी की खातिर माता पिता अपना सब कुछ न्यौछावर करने को हमेशा तैयार रहते है; जिनके लिये पिता दिन-रात मेहनत कर अपना पसीना बहाता है; उन्हें उँगली पकड़कर चलना सिखाता है; अपने पैरों पर खड़े होते ही वे बच्चे सब कुछ भूल जाते हैं । जब वृद्धावस्था में माँ-बाप को उनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है तब उन्हीं बच्चों को अपने माता-पिता बोझ लगने लगते हैं l यहाँ सवाल उठता है कि माँ-बाप ने तो कभी भी अपने बच्चो को बोझ नहीं समझा और ना ही कभी उन्हें अकेला छोड़ा l
वृद्धावस्था में माँ-बाप का शरीर इतना दुर्बल हो जाता है कि प्रत्येक बुजुर्ग को किसी न किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता होती है । उम्र बढ़ने के साथ बुजुर्ग लोगो की मानसिक क्षमता भी कम होने लगती है एवं उनकी याददाश्त शक्ति भी कमज़ोर हो जाती है । इस स्थिति में बुजुर्ग लोगो को भावनात्मक सहारे की ज़रूरत होती है । वे चाहते हैं कि घर के युवा बच्चे उनके साथ बैठें; उनसे बातचीत करें; उन्हें समय दें, और जब उन्हें यह सब नहीं मिलता है तो वे परिवार में अपनी भावनाएँ किसी के साथ साझा नहीं कर पाते और अपने आप को अकेलापन महसूस करते है । कई बुजुर्गों में ऐसे लक्षण मौजूद है जो उन्हें अवसाद (डिप्रेशन) का शिकार बनाते हैं । अकेले रहने को विवश वृद्धों में एक बड़ी संख्या विशेष रूप से विधवा महिलाओं की है ।
भारत सरकार की ओर से राष्ट्रीय वृद्धजन नीति 1999, माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 और वरिष्ठ नागरिकों के लिए राष्ट्रीय नीति 2011, वरिष्ठ नागरिकों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करती है । आयुष्मान भारत कार्यक्रम के तहत बुजुर्गों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम और स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में बुजुर्गों को समर्पित स्वास्थ्य सेवा प्रदान करते हैं ।
बता दें कि, बुजुर्गों के लिये गरिमा भरे जीवन को सुनिश्चित करने के लिये कानून में कई तरह के प्रावधान हैं । जिनमें एक कानून ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण कानून 2007 (MWPSC)’ है, जो विशेष रूप से संतानों द्वारा सताए जा रहे बुजुर्गों के लिये बनाया गया है । इसके तहत बच्चों/रिश्तेदारों के लिये माता-पिता/वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल करना, उनके स्वास्थ्य, उनके रहने-खाने जैसी बुनियादी ज़रूरतों की व्यवस्था करना अनिवार्य है ।
इस कानून की खास बात ये है कि अगर बुजुर्ग अपनी संपत्ति बच्चों या रिश्तेदार के नाम ट्रांसफर कर चुका हो और वो अब उसकी देखभाल नहीं कर रहे तो संपत्ति का ट्रांसफर भी रद्द हो सकता है । यानी वह संपत्ति फिर से बुजुर्ग के नाम हो जाएगी । इसके बाद वह चाहे तो अपने बेटे-बेटियों को अपनी संपत्ति से बेदखल भी कर सकता है ।
इसके अलावा, वे माता-पिता जो अपनी आय या संपत्ति के जरिए अपनी देखभाल करने में सक्षम नहीं हैं और उनके बच्चे या रिश्तेदार उनका ध्यान नहीं रख रहे तो वे भरण-पोषण का दावा कर सकते हैं । उन्हें हर महीने 10 हज़ार रुपये तक का गुजारा-भत्ता मिल सकता है । यही नहीं, भरण-पोषण के आदेश का एक महीने के भीतर पालन करना अनिवार्य है ।