दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l एक अच्छा नेतृत्व वही होता हैं जो समाज को विकास की सही राह दिखाता हैं यानि समाजिक संगठनो का नेतृत्व ही अपनी क्षमताओं एवं अपने बौद्धिक स्तर के आधार पर समाज के विकास को सुनिश्चित करता है । अतः सही नेतृत्व के चयन के लिए इस विषय पर चिंतन अनिवार्य हो गया है कि “समाजहित में कैसा हो हमारा समाजिक नेतृत्व”। आईये जानें इस ज्वलंत विषय पर समाजहित की सोच के धनी सेवानिवृत बाबूलाल बारोलिया द्वारा लिखे गए विचार :-
देश में रेगर समाज की सबसे बड़ी महापंचायत रूपी संस्था अखिल भारतीय रेगर महासभा (पंजीकृत) की नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी का गठन हो चुका है और समाज का राष्ट्रीय नेतृत्व समाज के लोगों ने सोच समझकर पूर्ण विश्वनीयता के साथ एक बार पुनः श्रीमान बी एल नवल साहब के हाथों सौंप दिया है । समाज के लोगों को विश्वास था कि इस बार महासभा एक नए ऊर्जावान स्तंभों के नए स्वरूप में दिखाई देगा फलस्वरूप समाज को नई दिशा और दशा मिलेगी । चुनाव से पूर्व मैंने रेगर समाज के अनेक ग्रुपों में जिसमें में जुड़ा हुआ था एक संदेश प्रचारित किया था कि समाज का नेतृत्व कैसा होना चाहिए। परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि मेरे उस संदेश पर किसी समाज नेता का ध्यान नहीं गया और यदि गया भी होगा तो अनदेखा कर दिया होगा । अनदेखा कर भी सकते है क्योंकि मैं कोई समाज सुधारक तो हूँ नहीं और ना ही मेरी कोई समाज में पहचान है । मैं तो केवल एक व्हाट्सअप अल्पज्ञानी हूँ जो केवल व्हाट्सएप्प पर ही ज्ञान बांट सकता हूँ, और मेरी कोई हैसियत नहीं है कि समाज के बड़े लोगों के साथ उठ बैठ सकूं,फिर यह व्हाट्सएप्प ज्ञानी पुनः समाज नेता/ सुधारकों से समाज के नेतृत्व के बारे में निवेदन करना चाहता है कि वर्तमान में हमारे समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय जी ने प्रेदेशाध्यक्षों की नियुक्ति कर दी है तथा अब प्रदेश अध्यक्ष जिला कार्यकारिणी भी मनोनीत कर रहे है ।
व्हाट्स ग्रुप के माध्यम से यह जानकारी मिल रही है कि प्रदेश,और जिला स्तर पर उन्हीं लोगों को मनोनीत किया जा रहा है जिन्होंने वर्षों से समाज सुधारक/नेता बनकर समाज सुधार की बागडोर संभाले हुए है और उनकी चाहना भी यही होती है कि वे ही राजनीतिक नेताओं की तरह समाज नेता भी बने रहे । इस मामले में उनके चहेते भी उनका पूरा साथ दे रहे है। खैर, समाज के अग्रणी नेता कुछ सोच समझकर अपने अपने हितार्थ प्रदेश और जिला स्तर का नेतृत्व सौंप रहे होंगे क्योंकि जिनको नेतृत्व दिया जा रहा है तो उनकी पृष्ठभूमि और उनके द्वारा समाज सुधार और समाज हित के कार्यों पर भी मनन करके ही किया होगा कि इन्होंने समाज के लोगों के लिए निःस्वार्थ भाव से कुछ उपलब्धियां तो हासिल की ही होगी, अतः ज्यादा गहराई में नहीं जाते हुए मेरा पुनः निवेदन है कि समाज सुधारकों को नेतृत्व की परिभाषा भी समझ लेनी चाहिए ।
नेतृत्व यानि अग्रणी भूमिका का निर्वहन । समाज रूपी संस्था में अग्रणी भूमिका मतलब बेहद जिम्मेदारी भरा पद । नेतृत्व की बागडोर अगर सही हाथों में हो, तो समाज तरक्की की सीढ़ियों पर चढ़ता है और अगर नेतृत्व क्षमता में दम और जज्बा ना हो तो सामाजिक स्तर का पतन हो जाता है । अब विचारणीय विषय यह है कि नेतृत्व कैसा हो? मेरी समझ में नेतृत्व करने वाले में सहनशीलता का गुण मुख्य रूप से होना चाहिए । इसके अलावा उसे कुशल संगठनकर्ता होना अति आवश्यक है । कोई भी नेतृत्व तभी सफल होगा जब उसके पास संगठित समूह होगा । सबको साथ लेकर चलने की भावना से ही सामाजिक स्तर पर प्रयास सफल होंगे। योजनाओं का क्रियान्वयन होगा। नेतृत्व करने वाले को अपने पद की गरिमा का ख्याल होना चाहिए। शब्दों का चयन पद को ध्यान में रखते हुए हो क्योंकि यह शब्द ही तय करते हैं कि इंसान किसी के दिल में उतर जाएगा या किसी के दिल से उतर जाएगा । सामंजस्य बिठाकर काम का बंटवारा करना कुशल नेतृत्व क्षमता को परिलक्षित करता है ।
हमारे समाज का नेतृत्व करने वाला व्यक्ति ऐसा हो जिससे हर कोई आदमी अपने दिल की बात बिना झिझक के उनके सामने रख सके । जिसे हम चुने उनका स्वभाव शांत, सुशील व अच्छे विचार वाला हो । एक खास बात यह भी हो कि जो वादा करे सभी से, वो कभी तोड़े नहीं। विश्वास ही हम सब की धरोहर है । जिन्हें हम चुनकर लाए वो समाज के लिए पूरी मेहनत व लगन से काम करे । ताकि हमारे समाज वालों को नौकरियों के लिए भटकना ना पड़े । किसी भाई का मैसेज आता है कि मेरा भाई या बेटा बीमार है, उसे रक्त की जरूरत है या फिर उसका ऑपरेशन करवाना है । लाखों रुपये चाहिए। 2-4 आदमी तो पढ़ करके सहायता जरूर करते हैं बाकी पढ़कर छोड़ देते हैं क्योंकि 1000 या फिर 2000 से तो काम होगा नहीं । मैं चाहता हूं कि ऐसी नौबत ही क्यों आए? हम हमारे समाज में ऐसे नेतृत्व को चुनें जो ऐसे जरूरतमंद लोगों की सहायता के लिये हमेशा तत्पर रहे । जो कमजोर और गरीब लोग है उनको कभी यह महसूस ना होने दें कि वे समाज से अलग थलग है या उनको कोई पूछनेवाला नहीं है । हर सामाजिक क्रियाकलापों में उनको भी आमंत्रित करें । समाज के लोगों पर कोई अन्याय या अत्याचार हो रहा हो तो सभी संगठित होकर उनका न्याय दिलाये और हर संभव सहायता करें । हमारा नेतृत्व कैसा हो’ का जबाब ढूंढे तो ये शायद औपचारिक मात्र ही होगा। वास्तव में उन्हें समाज रूपी परिवार के मुखिया की भूमिका में रहना अति आवश्यक है । उसकी दूरदृष्टि समाज के अंतिम छोर पर खड़े अपने ही सामाजिक भाई तक पहुंचे जो अभावों में कुछ कदम पिछड़ गया हो । ये नेतृत्व का ही धर्म है कि सब को एक समान समझ साथ लेकर चले ।
समाज के नेतृत्व के लिए चयन में विशेष तौर पर एक बात और ध्यान रखने योग्य है कि धैर्यपूर्वक जो समाज बंधुओं की बात सुनने की क्षमता रखता हो, मर्यादित भाषा का प्रयोग करने वाला हो, ऐसे ही विशेषता वाले व्यक्ति ही नेतृत्व की सही बागडोर संभाल कर रख सकते हैं । कुल मिलाकर जो व्यक्ति तन-मन और धन तीनों से समाज को सर्वश्रेष्ठ योगदान दे सकते हैं, वही समाज के नेतृत्व पद के लिए सच्चे अधिकारी हैं ।
नेतृत्व का तात्पर्य है, सही दिशा में निर्देशित करना, किन्तु आज पद पर बैठते ही बॉस प्रवृत्ति की एक प्रद्धति ने अपना प्रभुत्व जमा लिया है । प्रतिनिधि बनकर जब कोई व्यक्ति पद संभालता है, तब वास्तव में उसका उद्देश्य हुकूमत शाही न होकर सेवा भावना होना चाहिए । सामाजिक संस्थाएं वास्तव में समाज की उन्नति एवं समस्याओं के निराकरण के लिए गठित की जाती हैं ।
नई सोच के साथ सबको साथ लेकर आगे बढ़ने वाले सशक्त हाथों में यह जिम्मेदारी होनी चाहिए । नेतृत्वकर्ता को ‘स्व’ को भूलकर ‘पर’ को अपनाना होगा तभी वह हर समाज-बंधु से जुड़ सकता है । जब से डिजिटल युग का आरंभ हुआ है, समाज के हर बंधु से संपर्क रखना भी बहुत आसान हो गया है । बरसों से कुर्सियों पर विराजे समाज नेताओं को युवा-वर्ग को आगे बढ़ाकर उनका मार्गदर्शक बनना चाहिये । नई सोच और विचारधारा के युवाओं को अपने अनुभवों से सिंचित कर पनपने का अवसर देना होगा । समाज के उच्च-पदों पर पैसे और शक्ति के बल पर अपना हक ना जमाएं, तो उनका मान-सम्मान दिल से होगा वरना तो उनके आस-पास चमचागिरी का बोलबाला रहेगा । वर्षों से सामाजिक कार्यभार और पदों को संभालने वाले नेतृत्वकर्ता को अपनी पारखी आंखों से भावी युवा सामाजिक कार्यकर्ताओं को परख कर उन्हें जिम्मेदारियां सौंपनी चाहिए । परिवर्तन संसार का नियम है और हमारी समझदारी होगी कि हम इस बात को स्वीकार लें । समाज के नियम और कानूनों में निरंतर परिवर्तन कर एक सजीवता बनाए रखें । कुप्रथाओं का सहयोग नहीं विरोध करें । नेतृत्वकर्ता को समाज-बंधुओं के वैचारिक मतभेदों को मनभेद नहीं बनने दें वरना समाज-बंधुओं में आपसी गुटबाजी को बढ़ावा मिलेगा । जो भी सामाजिक आचार-संहिता बनाये जाए उस पर पदाधिकारी सदैव खरे उतरें क्योंकि उच्च-पदों का तो पूरा समाज अनुसरण करता है । अंत में मेरा यही निवेदन है अब भी वक्त है कि यदि वास्तव समाज सुधार एवं समाज का उत्थान चाहिए तो समाज का नेतृत्व वर्तमान शिक्षित एवं ऊर्जावान युवाओं के हाथों में देना चाहिए ।
नेतृत्व हो ऐसा, कर सके जो समाज का विकास..
बिन अहंकार के लेकर चले, सबको साथ साथ…।’