अखिल भारतीय रैगर महासभा के त्रिवार्षिक चुनाव में, जीतने के लिए लाखो खर्च कर रहे प्रत्याशी
दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व पंजाब में इन दिनों एक सामाजिक संगठन अखिल भारतीय रैगर महासभा के त्रिवार्षिक चुनाव का माहौल हैं l आगामी रविवार 25 दिसम्बर को महासभा का आम चुनाव होने वाला है l महासभा के सभी राज्यों को मिलाकर लगभग 12 हजार 358 मतदाता सदस्य हैं l जबकि 34 पदों पर 106 प्रत्याशी इस बार चुनाव में खड़े हैं l
पिछले एक महीने से दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व पंजाब के जिलो तहसील व गांवों के आस-पास के क्षेत्र में इस चुनाव को लेकर काफी हलचल है l इस बार चुनाव में खड़े प्रत्याशी एक-दूसरे को मात देने के लिए ऐड़ी चोटी लगा दे रहे है l एक सामाजिक संगठन का चुनाव मानो राजनीतिक दल का चुनाव बन गया है l उपरोक्त राज्यों के गली मोहल्लो के क्षेत्र छोटे-बड़े बैनर, होर्डिग से पट गये हैं l मतदाताओं को रिझाने के लिए प्रत्याशी उनके घर-घर पहुंचकर मतदाताओं को अपनी ओर लुभाने की कोशिश की जा रही है l यहां तक की प्रतिनिधि सदस्यों के मोबाइल पर एसएमएस के माध्यम से प्रत्याशी अपना प्रचार कर रहे हैं l इतना ही नहीं लाखों रुपये विज्ञापन पर खर्च किये जा रहे हैं l आम तौर पर सामाजिक संगठनों के चुनाव में इस प्रकार से पैसे की होली खेलते नहीं देखी गयी है l यहां तक की रोजाना उम्मीदवार विभिन्न स्थानों पर पार्टियों का भी आयोजन कर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं l
अखिल भारतीय रैगर महासभा के त्रिवार्षिक चुनाव में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, महासचिव, कोषाध्यक्ष जैसे पदों के लिए प्रत्याशी लाखों-लाखों रुपये खर्च कर रहे हैं l महासभा के 75 वर्ष के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ l अखिल भारतीय रैगर महासभा के संविधान में त्रिवार्षिक चुनाव एक कानूनी प्रक्रिया है, लेकिन सामाजिक संगठन जो समाज सेवा के लिए जाने जाते हैं वहां के चुनाव में इस प्रकार से खर्च करना गलत है l ऐसे में सामाजिक संगठन समाज सेवा के संगठन के रूप में नहीं सत्ता के संगठन में परिवर्तित हो जायेंगे l इस प्रकार के चुनाव के तौर तरीकों से आपसी दुश्मनी पैदा होती है व समाज की एकता तथा सद्भाव पर बुरा प्रभाव पड़ता है l साथ ही सामाजिक संस्थाओं की प्रगति में भी इस प्रकार के चुनाव बाधक हैं l
हमारे समाज के धर्मगुरूओ ने अखिल भारतीय रैगर महासभा में चुनाव के स्थान पर सर्वसम्मति से चयन की शिक्षा दी थी l महासभा जैसे सामाजिक संगठन सेवा के लिए होते हैं, ऐसे में संगठन के चुनाव में चुनाव जीतने के लिए लाखों का खर्च करना सही नहीं है l चुनाव में आने वाले खर्च का इस्तेमाल चुनाव करने में नहीं कर, समाजसेवा में करना सही है l
भले ही प्रत्याशी पैसे के दम पर समाज में अपने कद को ऊंचा करने के लिए जीत जाते हैं, लेकिन उसके बाद उन्हें अपने ही विरोधियों के विरोध का सामना करना पड़ता है l संगठन में देखा जाता है कि चुनाव के बाद चुने जाने वाले पदाधिकारियों को बदनाम करने के कार्य में एक वर्ग लग जाता है l इससे समाज सेवा की जगह आपसी तनाव बढ़ता है और समाज सेवा और समाज विकास नहीं हो पाता l इस प्रकार की चुनावी राजनीति समाज में ठीक नहीं है, इससे जिस उद्देश्य से सामाजिक संगठनों की स्थापना होती है वह उद्देश्य पूरा नहीं होता l इससे सामाजिक संगठन के क्रिया-कलाप पर सवालिया निशान उठने लगते हैं l