Sunday 08 December 2024 11:25 AM
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दिल्ली में रैगर पंचायत व महासभा के पास अपने नाम से कार्यालय हेतु निजी भवन नहीं है

दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l आज दिल्ली देश की राजनैतिक राजधानी है और रैगर समाज के लोग लगभग 1895 से दिल्ली में रह रहे है । दिल्ली में ब्रिटिशकाल के दौरान अंग्रेज अफसर बीडन सर की देन है बीडनपुरा, रैगरपुरा और देवनगर आदि l इन क्षेत्रो में बसने के बाद एक दुसरे के आपसी विवाद समाप्त कराने के लिए रैगर पंचायत का निर्माण हुआ, उसके बाद अखिल भारतीय रैगर महासभा बनाई गई l

रैगर समाज को दिल्ली में निवास करते हुए लगभग 129 वर्ष हो गए l रैगर समाज ने इन क्षेत्रो में मंदिरों का तो बहुत निर्माण किया, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि दिल्ली प्रांतीय रैगर पंचायत और अखिल भारतीय रैगर महासभा का कोई निजी कार्यालय हेतु अपना भवन नहीं बन पाया है l इस बात से प्रतीत होता है कि हमारा समाज अपने विकास के प्रति कितना उदासीन रहा l

हम दिल्ली से बाहर छात्रावास और धर्मशालाओ के निर्माण के लिए उदार हृदय से दान देते है और वहां विशाल भवन बनवाते है और दिल्ली में आपकी अपनी कोई सम्पति नहीं है इसमें कोई शक नहीं है कि राजस्थान और अन्य प्रदेश के लोगो के प्रति आप कितनी बड़ी सोच रखते है l यहाँ पुराणी प्रचलित कहावत याद आ गई घर का पूत कंवारा डोले और पाडोसी के फेरा”l

रैगर समाज के बाद दिल्ली में आकर बसने वाले अन्य समाजो की पंचायतो और महासभाओं ने अपने निजी कार्यालय बनाये और शिक्षा के लिए स्कूल, स्वास्थ्य के लिए हॉस्पिटल व सामुदायिक भवन बनाये है l दिल्ली में रैगर समाज के समाजसेवी संगठन पारंपरिक तरीके से चंदा इकत्रित कर भव्य कार्यक्रम आयोजित कर मंच, माइक,पगड़ी,सम्मान व भण्डारे की व्यवस्था में सारा पैसा खर्च कर समाज की समृद्धि व विकास की कामना करते रहे है । क्या ऐसा करने से समाज विकास संभव है ?

जब जागो तभी सवेरा की पंक्तियों का अनुसरण करते हुए, अभी भी समय है सामाजिक संगठनो के द्वारा तैयार समाज विकास की हर नीति/योजना का विश्लेषण प्रत्येक व्यक्ति और समाजसेवी को साहस और बुद्धिमत्ता के साथ करना चाहिए, और अवसर और आवश्यकता के अनुसार जो अस्वीकार्य हो, उसे अस्वीकार करना चाहिए,  जो सही हो, उसको बढाने में योगदान देना चाहिए, सुधार के लिए, बिना डरे बदलाव करना चाहिए,  यही हम सबका अनिवार्य बौद्धिक कर्तव्य है । तभी समाज विकास की राह पर अग्रसर होगा l

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