Sunday 08 December 2024 11:27 AM
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अंधविश्वास और आडंबर की बेड़ियों से कब मुक्त होगा समाज?

दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (बाबू लाल बारोलिया, अजमेर) l  जब हम रेगर समाज की बात करते है तो यह सोचकर अफसोस होता है कि हमारे रेगर समाज में भी अनेक महापुरुष हुए थे, जिन्होंने समाज उत्थान हेतु अपना सर्वस्व न्यौछवार कर दिया l लेकिन इन बहुरूपिया सवर्ण समाज और अन्य स्वार्थी तत्वों ने इतिहास से नामोनिशान मिटा दिया, ताकि समाज के उत्थान को अवरूद्ध कर हमेशा के लिए गुलाम ही रखा जा सके l फिर भी कुछ महापुरुष रेगर समाज में अपना इतिहास बचाने में कामयाब रहे, उनमें धर्मगुरु ज्ञानस्वरूप जी महाराज, स्वामी आत्माराम जी लक्ष्य जिन्होंने अपनी वाणी से समाज विकास और उत्थान हेतु अपना जीवन अर्पण कर दिया । 

हम इन असाधारण पुरुष और समाज सुधारकों के कार्यों को देखकर और इनके प्रयासों का सराहना ही कर सकते है, परन्तु अफसोस है कि आज दिन तक उनके प्रयास कारगर साबित नहीं हुए अपितु सामाजिक बुराइयों से मुक्ति मिलने के बजाय वृद्धि होना ही पाया गया है । हर समाज अपनी अच्छाइयों के साथ बुराइयां, संस्कारों के साथ कुरीतियां और तर्क के साथ अंधविश्वास अपनी अगली पीढ़ी में हस्तांतरित करता है । अंधविश्वासों की कोई तर्कसंगत व्याख्या नहीं हो सकती और ये परिवार और समाज में बिना किसी ठोस आधार के भी सर्वमान्य बने रहते हैं ।

आज के तकनीकी युग में भी यह लोगों के जहन में जगह बनाए हुए है । अब शिक्षित और अशिक्षित दोनों तरह के परिवारों में अंधविश्वास के प्रति मान्यताएं पाई जाती हैं । इन मान्यताओं को बिना सवाल किये पालन करने की उम्मीद बच्चों से की जाती है और अगर वे सवाल करते हैं तो दबाव बना कर समाज और परिवार उन्हें इन मान्यताओं और विश्वासों को मानने की तरफ धकेलते हैं ।

18वीं सदी में भारतीय समाज में ऐसे आंदोलन चले थे, जिसमें अंधविश्वास, आडंबर का जमकर विरोध किया गया, लेकिन आज तक बिना प्रभावित हुए प्रचलित है तो वह अंधविश्वास है और इस अंधविश्वास के साये में ढोंगी बाबाओं की दुकानें चलती हैं । कबीरदास जी ने अन्धविश्वास और पाखंड पर प्रहार करते  हुए कहा था कि:

       1.     लाडू लावन लापसी ,पूजा चढ़े अपार |  पूजी पुजारी ले गया,मूरत के मुह छार ||

       2.     पाथर पूजे हरी मिले, तो मै पूजू पहाड़ | घर की चक्की कोई न पूजे, जाको पीस खाए संसार ||

3.     इसी प्रकार बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि “ मंदिर में बैठा भगवान खुद अपना दीपक नहीं जला सकता तो तुम्हारी जिंदगी में दीपक कैसे जलाएगा |

रेगर समाज में भी अन्य समाज की तरह ऐसी अनेक धारणाएं आज भी हमारे बीच विद्यमान हैं । आश्चर्य यह है कि इस प्रकार के अंधविश्वासों को न केवल अनपढ़ व ग्रामीण लोग मानते है, बल्कि पढ़े-लिखे शिक्षित युवा व शहरी लोग भी इसकी चपेट में आ चुके हैं । लोग बाबाओं के बहकावे में आकर अपने परिवार तक मोक्ष पाने की लालसा में बर्बाद कर देते है यहाँ तक कि अंधविश्वासों के चक्कर में पड़कर कभी अपने तो कभी दूसरे के बच्चों की बलि तक दे देते हैं । आज भी हमारे समाज में अंधविश्वास और पाखंड  को लोग मानते है l

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