असली पढ़ा-लिखा इंसान वही होता है, जिसके अंदर नैतिकता और इंसानियत की भावना हो
दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l आज के इस भौतिक युग में मनुष्य शिक्षित जरुर है लेकिन उनमे मानवता का अभाव है l मानव समाज में कई तरह के शोषणकारी कृत्य व्याप्त है जिसके कारण ऐसा लगता है मानो हर तरफ मानवता जैसे रो रही हो । विश्व का ऐसा कोई कोना नहीं बचा है, जहां हर रोज कहीं धर्म के नाम पर तो कहीं राजनीति के नाम पर । कहीं तथाकथित उच्च वर्ग के लोग तथाकथित निम्न वर्ग के लोगों का शोषण कर रहे है तो कहीं श्वेत अश्वेतों का शोषण कर रहे है तो कहीं पुरुष महिलाओं का शोषण कर रहे है l ना जाने कितने लाखों लोग बेघर हो रहे है और कितने ही मासूम बच्चे अनाथ हो रहे है l इसी तरह हर तरफ मानवता का गला दबाया जा रहा है । शोषणकारी कृत्य की सोच, समाज में मानव की सर्वोच्चता, सत्ता और शक्ति की शरण में लालच के रूप में जन्म लेती है और ये लालच ही मानवता के विनाश की जड़ है l
समाज में बहुत सारे ऐसे लोग मिल जाते हैं जो अपने आप को तो बहुत पढ़ा-लिखा मानते हैं, लेकिन उनकी हरकतों को देख कर ऐसा लगता है कि वे शिक्षित होकर भी अशिक्षित ही हैं । कई अधिकारी तो हाई क्वालीफाई होते हुए भी बात-बात पर गलत शब्दों या गालियों तक का प्रयोग करना अपनी शान समझते हैं ।
एक बार एक प्रशासनिक अधिकारी उत्तर प्रदेश की यात्रा पर गए । उनके साथ उनकी पत्नी भी थीं । रास्ते में एक बाग के पास वे लोग रुके । बाग के पेड़ पर बया पक्षियों के घोसले थे । उनकी पत्नी ने कहा दो घोसले मंगवा दीजिए मैं इन्हें घर की सजावट के लिए ले चलूंगी । उन्होंने साथ चल रहे पुलिस वालों से घोसला लाने के लिए कहा । पुलिस वाले वहीं पास में गाय चरा रहे एक बालक से पेड़ पर चढ़कर घोसला लाने के बदले दस रुपये देने की बात कहे, लेकिन वह लड़का घोसला तोड़ कर लाने के लिए तैयार नहीं हुआ । प्रशासनिक अधिकारी ने उसे दस की जगह पचास रुपए देने की बात कहे फिर भी वह लड़का तैयार नहीं हुआ । उसने अधिकारी से कहा साहब जी! घोसले में चिड़िया के बच्चे हैं शाम को जब वह भोजन लेकर आएगी तब अपने बच्चों को न देख कर बहुत दुखी होगी, इसलिए आप चाहे जितना पैसा दें मैं घोसला नहीं तोड़ सकता ।
इस घटना के बाद प्रशासनिक अधिकारी को आजीवन यह ग्लानि रही कि जो एक चरवाहा बालक सोच सका और उसके अन्दर जैसी संवेदनशीलता थी, इतने पढ़े-लिखे और आईएएस होने के बाद भी वे वह बात क्यों नहीं सोच सके, उनके अन्दर वह संवेदना क्यों नहीं उत्पन्न हुई? उन्होंने कहा उस छोटे बालक के सामने मेरा पद और मेरा आईएएस होना गायब हो गया । मैं उसके सामने एक सरसों के बीज के समान हो गया । शिक्षा, पद और सामाजिक स्थिति मानवता के मापदण्ड नहीं हैं । प्रकृति को जानना ही ज्ञान है । बहुत सी सूचनाओं के संग्रह से कुछ नहीं प्राप्त होता । जीवन तभी आनंददायक होता है जब ज्ञान,संवेदना और बुद्धिमत्ता हो l
शिक्षा का मतलब यह नहीं है कि किताबों का ज्ञान हो जाए, बल्कि नैतिकता और आसपास की अच्छी बातों का ज्ञान होने के साथ-साथ इंसानियत का ज्ञान होना भी बहुत जरूरी है । असली पढ़ा-लिखा इंसान वही होता है, जिसके अंदर नैतिकता की भावना हो, इंसानियत हो, समाज में अच्छी शिक्षाओं का प्रसार करे और भौतिकवाद में भी अच्छी तरह खुद जिए और लोगों को भी अच्छी तरह जीने की सलाह दे ।