नवरात्रा विशेष : शारदीय नवरात्रा में माँ शक्ति स्वरूपा नव दुर्गा की होती है, नौ दिनों तक भक्ति, आराधना व उपासना
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके, शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।’
दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (पत्रकार रामलाल रैगर) l नवरात्रा माघ, चैत्र, आषाढ़ और अश्विन माह के अन्दर पूरेे एक वर्ष में चार बार आते है, माघ व आषाढ़ के नवरात्रा, गुप्त नवरात्रा तथा चैत्र मास के नवरात्रा, वासंतिक नवरात्रा, वहीं अश्विन माह में आने वाले नवरात्रा शारदीय नवरात्रा के नाम से जाने व पहचाने जाते है। शारदीय नवरात्रा अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि से प्रारम्भ होकर नवमी तक होते है तथा दशमी को दशहरा के रूप में मनाया जाता है। यह नवरात्रा माँ शक्ति स्वरूपा नव दुर्गा – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धिदात्री के रूप में नौ दिनों तक भक्ति, आराधना व उपासना करके मनाये जाते है। नवरात्रा एक संस्कृत शब्द है अर्थात् नौ रातें। इन नौ रातों में माँ शक्ति की आराधना व उपासना की जाती है। इस पर्व को नौ दिनांे तक बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है तथा माँ दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए उसकी प्रतिमा के सामने डाण्डिया-गरबा नृत्य केे साथ-साथ माँ की नौ दिन तक भक्ति, आराधना व उपासना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि शक्ति ही विश्व की सृजनकर्त्ता है, शक्ति ही पालनकर्त्ता है, शक्ति ही उसकी संहारकर्त्ता है यानि शक्ति ही सब कुछ है।
शहर में मातादी व बालाजी के मन्दिरों के साथ-साथ कई घरों में होती है घटस्थापना:- शहर झालावाड़ में स्थित माँ दुर्गा स्वरूपा मन्दिरों जैसे माँ श्री नानादेवी माता, चामुण्डा माता, कालका माता, कैलादेवी, मंगलेश्वरी देवी, बस स्टेण्ड परिसर में विराजित मातादी इत्यादि मन्दिरों पर घटस्थापना होती है इसके अलावा शहर में स्थित बालाजी के मन्दिरों पर व माँ दुर्गा में आस्था रखने वालो के घरों पर घटस्थापना की जाती है। इस अवसर पर मन्दिरों पर विद्युत सजावट होती है, बड़े-बड़े पाण्डाल सजाये जाकर गरबा-डाण्डियों के साथ-साथ प्रश्नोत्तरी व बच्चों के खेलकूद जैसे कई कार्यक्रम आयोजित किये जाते है तथा नवरात्रा के प्रथम दिवस से अन्तिम दिवस तक शहर के स्त्री, पुरूष व बच्चे बढ़-चढ़कर भाग लेते है और मन्दिरों पर पहुंचकर माँ व बालाजी का आशीर्वाद ग्रहण कर दर्शन लाभ उठाते है।
झालावाड़ शहर में प्राकृतिक सौन्दर्य के मध्य विराजित है माँ श्री नानादेवी मातादी:- श्री सूर्यवंशी कुमरावत (तम्बोली) समाज की कुल देवी माँ नानादेवी मातादी का मन्दिर जो गांवड़ी के तालाब के किनारे, विशालकाय वृक्षों की छांव में स्थित है, परिसर से तालाब की ओर तालाब के मध्य स्थित बगुले की छतरी व रेल्वे स्टेशन के नजारे के साथ-साथ हरे-भरे पेड़ो से लदी पहाड़ियों का प्राकृतिक सौन्दर्य जिसमें एक ओर चाय-पानी का चबूतरा तो दूसरी ओर मंगलनाथ की डूंगरी नजर आती है, वहीं संध्याकालीन के समय पहाड़ियों के पीछे अस्ताचल की ओर जाता सूर्य का दिखाई देना, आसमान की शाम सिन्दूरी की लालिमा उसके साथ-साथ रेलगाड़ी का उनके मध्य से गुजरने का दृश्य देखकर हर व्यक्ति भाव विभोर हो जाता है वही इनका प्राकृतिक सौन्दर्य का प्रतिबिम्ब जब ठहरे हुए तालाब के पानी में दिखाई देता है तो मन गदगद हो उठता है, ऐसा लगता है मानो की स्वर्ग यहीं उतर कर आ गया हो। वहीं दूसरी ओर पर्यटक हट्स तथा परिसर के आस-पास तालाब के किनारे लगे खजूर के वृक्ष तथा प्रातःकाल व सांयकाल टेªक पर भ्रमण करने वाले रोज तालाब की हिलोरो के साथ-साथ मछलियों की अठखेलियों का भरपूर आनन्द लेते हुए उन मछलियों को दाना डालते है। ऐसे प्राकृतिक सौन्दर्य के मध्य में विराजित है माँ श्री नानादेवी मातादी। माँ का विशाल हृदय दयालु व करूणा के सागर से भरा हुआ हैै यहाँ आने वाले सभी श्रद्धालु व आगन्तुकों द्वारा केवल मात्र माँ के दर्शन करने से उनके सभी प्रकार के कष्ट व दुःख दूर हो जाते है तथा सभी को अपने आँचल की छाँव में रखकर उनकी सभी मुरादंे पूरी करती है। माँ के दरबार में पहुंचते ही आत्म शान्ति का अनुभव होता हैै तथा ऐसा महसूस होता है कि हम स्वर्ग में आ गये हो। माँ के एक बार दर्शन करने से आपका मन बारम्बार माँ के दर्शन करने के लिए लालायित हो उठता है तथा श्रद्धालु व भक्तजन बारम्बार माँ के दर्शनार्थ आते रहते है।
माँ श्री नानादेवी मातादी के साथ-साथ और कई थानक है:- माँ श्री नानादेवी मातादी के साथ केसर बाई विराजित है तथा दूसरी तरफ माँ झूमा देवी, नाग कन्या व गणेश जी तथा चौक में चौसठ योगिनी, संतोषी माता, माँ कंकाली, झुण्ड भैरू, माँ चामुण्डा, कालाजी, सगस जी, गणेशजी, बजरंग बली व शिवपार्वती परिवार माँ नानादेवी मन्दिर परिसर में विराजित है। ऐसा माना जाता है कि यह मन्दिर झालावाड़ के राज्य कालीन स्थलों के समय का है।
दूर-दूर से आते है यात्री:- नवरात्रा के समय में माँ श्री नानादेवी मातादी के दर्शन का लाभ लेने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु एवं दर्शनार्थी आते है, माँ से अपनी मनोकामना करते है वह पूर्ण होने पर भक्तजन अपनी बोलारी भी उतारते है। माँ श्री नानादेवी सभी की मनोकामना पूर्ण करती है इसी कारण दूर-दूर से यात्री उनकी एक झलक पाने के लिए दौड़ा चला आता है और माँ का आशीर्वाद पाकर व माँ छवि को अपने हृदय में बसा कर आत्म विभोर होकर जाता है। ‘‘या देवी सर्वभूतेषु माँ शक्ति रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः।।’’